गंगा असनोडा थपलियाल! -- जीवन में पग पग पर संघर्षों से सामना, हौंसला कभी नहीं डिगा। आज लाखों बेटियों के लिए है प्रेरणास्रोत।
(नवरात्रि विशेष - किस्त - 3)
ग्राउंड जीरो से संजय चौहान।
परसों से नवरात्रि प्रराम्भ हो गये है। नवरात्रि का अर्थ होता है 'नौ रातें'। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। लीजिए ग्राउंड जीरो से नवरात्रि विशेष के तहत 9 दिनों तक आपको उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों से 9 ऐसी देवी तुल्य महिलाओं से रूबरू करवाते हैं जिन्होंने अपने कार्यों, संघर्षों और जिजीवाषा से एक मिशाल पेश की है। नवरात्रि के तीसरे दिन प्रस्तुत है पहाड़ की उस बेटी की दास्तान जिसके हिस्से खुशियाँ कम, दुःख ज्यादा आये। लेकिन उसने कभी भी हार नहीं मानी। बल्कि हालतों से लड़ी और जीवनदायनी गंगा की तरह अपने कार्य में और मजबूती से जुट गयी। उस बहादुर बेटी का नाम है पत्रकार गंगा असनोडा थपलियाल।
पहाड़ की आवाम और शहीदों के सपनों की राजधानी गैरसैण में वरिष्ठ पत्रकार पुरूषोत्तम असनोडा जी की पुत्री है गंगा असनोडा थपलियाल। जिनका जन्म वैसे तो अल्मोडा जनपद के रानीखेत तहसील के फयाट नोला गाँव में हुआ था, लेकिन परवरिश से लेकर पढ़ाई लिखाई गैरसैण मे ही हुई। इस दौरान वे अहमदाबाद में भी रही। 12 वीं करने के बाद गोपेश्वर महाविद्यालय से स्नातक की शिक्षा ग्रहण की। जिसके बाद पत्रकारिता में स्नातक और पत्रकारिता में स्नाक्तोतर डिग्री श्रीनगर से पूरी की। जिसके बाद दैनिक अमर उजाला में ट्रैनी पत्रकार से ब्यूरो चीफ तक की जिम्मेदारी का बखूबी निर्वहन करने के बाद अब अपने पति की विरासत मासिक पत्रिका रीजनल रिपोर्टर के संपादन की जिम्मेदारी ।
नियति नें गंगा के हिस्से खुशी कम, जख्म ज्यादा दिये, पर हौंसला कभी नहीं खोया।
-- गंगा नें पढ़ाई पूरी करने के बाद पत्रकारिता को कैरियर बनाया और बेहद संजीदगी से पत्रकारिता को ऊचांई तक ले गई। इसी दौरान श्रीनगर के प्रख्यात पत्रकार बी.शंकर थपलियाल से उनकी शादी हो गयी। शादी के 9 साल तक तो गंगा ने जो चाहा था सबकुछ मिला। लेकिन शादी के 9 साल तीन महीने बाद गंगा के हंसते खेलते परिवार को न जाने किसकी नजर लग गयी। 17 फरवरी महाशिवरात्रि का वो मनहूस दिन गंगा के हिस्से की सारी खुशियाँ छीन गया। और गंगा के ऊपर दु:खो का पहाड़ टूट पडा। एक ही दिन में पहले पति भवानी शंकर थपलियाल की आकस्मिक मृत्यु और उसके बाद ससुर उमा शंकर थपलियाल की मृत्यु से गंगा के ऊपर दु:खो का पहाड़ टूट पड़ा था। तीन महीने बाद देवर की आकस्मिक मृत्यु नें तो गंगा को झकझोर कर रख दिया था। ऐसी परिस्थितियों में कोई और होता तो वो अपना मानसिक संतुलन खो देता। लेकिन पहाड़ की इस बेटी नें अपने पति, ससुर, देवर के सपनों को पूरा करने व अपने परिवार के भविष्य के लिए आंसू तो बहाये लेकिन अपना हौंसला नहीं खोया। उसने अपने को मानसिक रूप से बेहद मजबूत कर लिया और अपने पति की विरासत मासिक पत्रिका रीजनल रिपोर्टर का बखूबी से संपादन किया। आज गंगा का जीवन संघर्ष लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत है कि चाहे कितनी विपरीत परिस्थितियों से क्यों न गुजरना पडे यदि हौंसला हो तो बड़ी सी बड़ी परेशानियों से पार पाया जा सकता है। गंगा का जीवन सबके सामने एक जीता- जागता उदाहरण है।
बाबू जी से विरासत मे मिली थी पत्रकारिता की शिक्षा। पति बनें गुरु!
गंगा असनोडा थपलियाल को अपने ही घर में अपने बाबूजी वरिष्ठ पत्रकार पुरूषोत्तम असनोडा जी से पत्रकारिता का कहखरा सीखने को मिला था जबकि पति स्व. बी.शंकर थपलियाल नें एक गुरु की भांति गंगा को पत्रकारिता की बारिकीयां सिखाई थी जिसकी परिणति ये हुई की गंगा की लेखनी का हर कोई मुरीद है।
पत्रकारिता को व्यवसाय नहीं बल्कि मिशन बनाया।
पत्रकारिता की डिग्री के बाद गंगा चाहती तो इसे व्यवसाय का रास्ता बनाती लेकिन पिताजी के आदर्श और पति की सीख नें गंगा को हमेशा पत्रकारिता धर्म निभाने की सीख दी। तभी तो छुट्टी के दिन भी एक खबर भेजने के लिए अपने पति के सवाल -- ये है जुनुनी पत्रकार-- पर तपाक से जबाब दिया की--
ये जुनून तब पूरा होगा, जब ये खबर छपेगी
और छपेगी तब जब ये समय पर पहुंचेगी
वहीं दूसरा वाक्या केदारनाथ आपदा के दौरान खबर के लिए एक गर्भवती महिला (विधवा) के प्रसव के समय तब तक अस्पताल में मौजूद रही जब तक उसकी डिलीवरी न हो जाती।
उक्त दोनों घटनाएँ ये अहसास कराती है कि गंगा पत्रकारिता के लिए कितनी समर्पित है। और आज भी हर महीने रीजनल रिपोर्टर के लिए खबरों को लेकर ये समर्पण देखा जा सकता है।
माधुरी में छपी 'मृत्तिका' कहानी के बाद पत्रकारिता में लिया एडमिशन।
गोपेश्वर महाविद्यालय मे स्नातक में पढ़ाई के दौरान विद्यालय की वार्षिक पत्रिका माधुरी में छपी 'मृत्तिका' कहानी पर पहले हिंदी के प्रोफेसर धीरेंद्र नाथ तिवारी और बाद में बाबू जी (पुरूषोत्तम असनोडा जी) से मिली सराहना के बाद ही गंगा को श्रीनगर में पत्रकारिता में एडमिशन मिला।
जनआंदोलनो की हिमायती व कवि सम्मेलनों में शिरकत।
गंगा ने बचपन से ही जनआंदोलनो को बेहद करीब से देखा है। साथ ही पहाड़ की विषम भौगोलिक परिस्थितियों से भी सामना करना पडा। इसलिए जब भी जनआंदोलनो की सुगबुगाहट महसूस होती है तो गंगा सबसे अग्रिम कतार में खड़ी रहती है। वहीं गंगा एक कवियत्री भी है जिन्हें आप कवि सम्मेलनों में कविता पाठ करते हुये देख सकते हैं।
एक गंगा हिमालय से निकलती है और बंगाल की खाड़ी तक अपने 2525 किमी के सफर में लाखों लोगों के लिए वरदान बन जाती है। एक गंगा मेरे पहाड़ की वो बेटी है जो आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत है। वास्तव मे देखा जाय तो गंगा असनोडा थपलियाल नें बेहद संघर्षों के उपरांत अपना मुकाम तय किया है। गंगा उन लोगों के लिए प्रेरणास्रोत है जो जीवन मे थोड़ी सी कठिनाइयों पर हार मान लेते हैं। परसों से शरदीय नवरात्रि प्रराम्भ हो गये है। नवरात्रि के तीसरे दिन ये आलेख पहाड़ की बेटी गंगा असनोडा थपलियाल को उनके संघर्षों, जिजीवाषा और बुलंद हौंसलो को एक छोटी सी भेंट ...
हजारों हजार सैल्यूट बैणी आपके संघर्षों को...
(पत्रकार संजय चौहान ने नवरात्र पर उत्तराखंड की नव दुर्गा की प्रतीक महिलाओं पर आलेख लिखा, गंगा असनोड़ा थपलियाल पर नवरात्र की तीसरी कड़ी रही।)